बुधवार, 25 जुलाई 2018

टेंगरा मछली (बाल कहानी) | Kids story in hindi

किसी गाँव में एक किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। कद-काठी से खूब लंबा-चौड़ा और स्वभाव से एकदम मिलनसार। सबलोग उसे पसंद करते। घर में किसी चीज की कोई कमी न थी सिवाय एक संतान के। दोनों इस कारण उदास रहते थे लेकिन बेचारे करते भी तो क्या? कई उपाय किए पर सब बेकार।

किसान रोज सुबह-सुबह नाश्ता करके अपने खेत में काम करने चला जाता और डटकर मेहनत करता। दोपहर को उसकी पत्नी खाना लेकर आती फिर दोनों वहीं साथ में खाना खाते। एकदिन किसान के जाने के बाद पत्नी खाना बनाने बैठी। आज वह मछली-चावल पकानेवाली थी। पड़ोस की मछुआरिन ताजा टेंगरा मछलियाँ दे गई थी। उसने सारी तैयारी कर ली और मछलियाँ झोले से निकालकर धोने के लिए बर्तन में रखीं। तभी अचानक बर्तन लुढ़क के गिर गया और सारी मछलियाँ बिखर गयीं। पत्नी ने जल्दी-जल्दी उनको वापस समेटा और धो, काटकर पका दिया। अबतक दोपहर हो चुकी थी। किसान को खाना देने जाने का समय हो रहा था। पत्नी आज थोड़ी थकान महसूस कर रही थी लेकिन पति को खाना देना भी जरूरी था सो उसने डिब्बा तैयार किया और उठ के खड़ी हुई। मुँह से उदास बोल फूट पड़े,

"काश, हमारा भी एक बेटा होता तो अभी खाना दे आता"

तभी एक आवाज आई,

"अम्मा, मुझे दो न बर्तन, मैं दे आता हूँ बापू को खाना"

"हाँय, ये कौन बोला?" किसान की पत्नी घबरा के इधर-उधर देखने लगी। वही आवाज फिर आई,

"अम्मा मैं हूँ, टेंगरा मछली"

"अरे, टेंगरा मछली? वह कैसे बोल सकती है? और उनको तो मैंने पका भी दिया" बड़बड़ाती हुई वह रसोई से बाहर भागने लगी कि एक मछली नीचे रखी बाल्टी के पीछे से निकलकर उसके ठीक सामने आ खड़ी हुई।

"अरे अम्मा डरो मत, मैंने तुमको अम्मा कहा न, फिर कैसा डर?"

"हायराम, बोलनेवाली मछली" 

किसान की पत्नी और भी ज्यादा सहम के दीवार से सटकर खड़ी हो गयी।

"हाँ अम्मा मैं बोल सकता हूँ, जब तुम्हारा बर्तन गिरा था उसी समय मैं उससे छिटक के यहाँ कोने में आ गया था"

"अच्छा ठीक है लेकिन अब मैं क्या करूँ?"

"अरे करना क्या है अम्मा? दो मुझे डिब्बा, मैं बापू को खाना दे आता हूँ। तुम आराम करो"

किसान की पत्नी को थोडा-थोडा मछली पर प्यार आने लगा था उसके मुँह से "अम्मा" सुनकर सो उसने डिब्बा मछली को दे दिया।

"ले सम्हाल के ले जाना"

"अरे चिंता मत करो अम्मा" कहते हुए मछली ने डिब्बे को सर पर रखा और खेतों की और दौड़ लगा दी।

उधर किसान परेशान था कि पत्नी ने बड़ी देर लगा दी खाना लाने में! कि तभी मछली वहाँ आ गयी और बोली,

"बापू, खाना कहा लो"

किसान ने हैरानी से चारों ओर देखा कि कौन उसको पुकार रहा है लेकिन कोई नजर न आया। आवाज फिर आई,

"अरे बापू, मैं हूँ, टेंगरा मछली"

किसान भी चौंक गया। उसने नीचे देखा तो वही टेंगरा मछली खाने का डिब्बा लिए खड़ी थी। वह थोडा डरा लेकिन अचानक उसे अपनी पत्नी की चिंता होने लगी सो उसने हिम्मत जुटा के कहा,

"अरे तू मुझे बापू क्यों कह रहा है? और तू बोल कैसे रहा है?  ये खाना कहाँ से लाया? मेरी पत्नी किधर गयी? वह ठीक तो है?"

मछली ने अपने सरपर हाथ रखा और बोली,

"हे भगवन, अब बापू भी वही सब पूछने लगे....अरे बापू चुपचाप खाना खाओ और घर चलो...ये सारी बातें अम्मा से पूछ लेना"

"अरे पर ये बापू..अम्मा?" किसान को कुछ समझ नही आ रहा था।

"ओह्हो, बोला न मुँह बंद करो और खाना खाओ" मछली ने जोर से डांट लगा दी। बेचारा किसान भी घबरा गया और जल्दी-जल्दी खाने लगा। जैसे-तैसे सारा निगल के वह उठ खड़ा हुआ और मछली से बोला,

"चल अब घर मेरे"

"हाँ चलो" मछली मुस्कुरा के बोली।

दोनों घर लौटे। किसान की पत्नी दरवाजे पर ही खड़ी थी। उसको सही-सलामत देखकर किसान की जान में जान आई।

"अरी ये सब क्या है?" किसान ने घर में घुसुते ही सवाल किया। पत्नी ने सारी बातें बताई। सारा माजरा सुनकर किसान को भी मछलीपर थोड़ी ममता होने लगी। वह पत्नी से बोला,

"अजी अगर ऐसा हो कि हम इसे अपने साथ रख लें तो?"

किसान की पत्नी को तो जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गयी हो। वह चहक के बोली,

"अरे बहुत ही अच्छा ख्याल है आपका, ये हमारे साथ हमारे घर में हमारा बेटा बनके रहेगा"

किसान भी खुश हो गया। दोनों ने मछली को अपने हाथों में उठाया और बोले,

"तू हमारे साथ हमारे ही घर में रहेगा न हमारा बेटा बनके?"

उनके इतना कहनेभर की देर थी कि मछली उनके हाथों से उछल के कमरे में थोड़ी दूर जा गिरी और देखते ही देखते उसने एक सुन्दर 15-16 साल के लड़के का रूप ले लिया। किसान और उसकी पत्नी के आश्चर्य का ठिकाना न था। वे एक टक से मुँहबाये उसको निहार रहे थे कि तभी लड़का मुस्कुराता हुआ बोल पड़ा,

"अम्मा, बापू आपलोगों के कारण मुझे एक शाप से मुक्ति मिल गयी"

"शाप? कैसा शाप?" किसान की पत्नी ने पूछा,

"एक जादूगरनी मुझसे शादी करना चाहती थी लेकिन जब मैंने उसको मना किया तो उसने मुझे शाप देकर मछली बना दिया और बोली कि जब कोई इसी मछली रूप में तुझे अपना बेटा मान के अपने घर रखने को तैयार होगा तभी तुझे शाप से मुक्ति मिलेगी। तब से आजतक मैंने बहुतों के सामने कोशिश की लेकिन किसी ने मुझे इस तरह माँ-बाप का प्यार नहीं दिया। आपलोग बहुत अच्छे लोग हैं। आपके कारण मुझे मुक्ति मिली। मैं पडोसी राज्य का राजकुमार हूँ। आपलोग मेरे महल चलिए। मेरे माता-पिता आपसे मिलकर बहुत खुश होंगे। हमसब साथ-साथ पूरी जिंदगी एक परिवार की तरह बिताएंगे। मैं आपलोगों को भी अपने माता-पिता जैसा ही सम्मान दूंगा।

किसान और उसकी पत्नी ने एक-दूसरे को देखा। उनकी आंखों में खुशी के आँसू थे आखिर उनको एक संतान जो मिल चुकी थी। (समाप्त)


लेखिका -  कुमुद भूषण

*यह कहानी मेरी मम्मी की लिखी हुई है - कुमार गौरव अजीतेन्दु

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