एक सड़क किनारे सदियों से खड़ा वो पेड़ बड़ा छायादार था। पथिक रोज थके-माँदे आते और उसकी छाया तले शांति के कुछ क्षण ढूँढने का प्रयास करते। एक रोज तपती दुपहरी में वो पेड़ भी ऊँघ रहा था तभी एक आदमी हँसता-कूदता आया और उसके नीचे बैठ के कुछ गुनगुनाते हुए अपनी पोटली खोली और कुछ रोटियाँ निकाल साथ रखी सब्जी के साथ खाने लगा। पेड़ को बड़ी हैरानी हुई। अबतक जितने लोग उसके पास आराम करने आते थे सब के सब पसीने से लथपथ, हाँफते-काँपते होते थे और ये आदमी भरी दुपहरी में भी तरोताजा? कैसे? लेकिन वह चुप रहा। खाने के बाद वो आदमी थोड़ी देर वहीं लेटा रहा फिर चलने को हुआ। अब पेड़ ने पूछा "भाई मैंने अबतक जितने लोगों को यहाँ से गुजरते देखा वो सब बेहद थके, हताश दिखते थे किन्तु तुम ऐसे लगते हो मानो अभी सुबह की ताजगी है"
आदमी मुस्कुराया और बोला "भाई, वो लोग अपने माथेपर सपनों का एक बड़ा बोझ लेकर चलते हैं। उनमें कुछ उनके अपने होते हैं, कुछ औरों से चुराये हुए। इसलिए वो सदा थके रहते हैं। उन सपनों में से जो अपने नियत समयपर पूरे नहीं हो पाते, टूटकर गिर जाते हैं जिनके टुकड़ों से पाँव भी घायल हो जाते हैं जिनसे मन में वेदना और हताशा का जन्म होता है। मेरे साथ सिर्फ मेरे कर्म और स्वस्थ विचारयुक्त उन्मुक्त हँसी है जो मुझे सदैव सुख देती है, अच्छा अब विदा दो, काफी लंबा रास्ता है" कह वो आदमी गाता हुआ आगे चल दिया।
पेड़ आशीष से भरी दृष्टि से उसे जाता देख रहा था और मन ही मन में कह रहा था "तुम सदा सुखी रहोगे"।
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