वो बच्चा बीनता कचरा
कूड़े के ढेर से, लादे पीठ पर बोरी
फटी निकर में, बदन उघारे
सूखे-भूरे बाल, बेतरतीब
रुखी त्वचा सनी धूल-मिटटी से
पतली उँगलियाँ, निकला पेट
भिनभिनाती मक्खियाँ
घूमते आवारा कुत्ते
सबके बीच
मशगूल अपने काम में
कोई घृणा नहीं, कोई उद्वेग नहीं
चित्त शांत, निर्विचार, स्थिर
कदाचित
मान लिया खुद को भी
उसी का एक हिस्सा
रोज का किस्सा
चीजें अपने मतलब की
डाल बोरी में चल पड़ता है
आगे अपने नित्य के
अनजाने या फिर अंतहीन सफ़र पर
शायद कल फिर आना हो चुनने
कुछ छूटे टुकड़े जिंदगी के
कूड़े के ढेर से, लादे पीठ पर बोरी
फटी निकर में, बदन उघारे
सूखे-भूरे बाल, बेतरतीब
रुखी त्वचा सनी धूल-मिटटी से
पतली उँगलियाँ, निकला पेट
भिनभिनाती मक्खियाँ
घूमते आवारा कुत्ते
सबके बीच
मशगूल अपने काम में
कोई घृणा नहीं, कोई उद्वेग नहीं
चित्त शांत, निर्विचार, स्थिर
कदाचित
मान लिया खुद को भी
उसी का एक हिस्सा
रोज का किस्सा
चीजें अपने मतलब की
डाल बोरी में चल पड़ता है
आगे अपने नित्य के
अनजाने या फिर अंतहीन सफ़र पर
शायद कल फिर आना हो चुनने
कुछ छूटे टुकड़े जिंदगी के
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