रविवार, 22 जुलाई 2018

वानप्रस्थ (लघुकथा)

गुप्ता जी लॉन में बैठे चाय पी रहे थे तभी टेबलपर एक सूखा, पीला पड़ता पत्ता आ गिरा

"क्या हुआ भई? अपनी डाल को छोड़ आए" गुप्ता जी ने पूछा

"वहाँ अब नये पत्तों का जमाना आ गया बंधु, किसी दिन आँधी में उनसे रगड़ खाकर टूटता इससे बेहतर खुद ही हट गया"

रिटायरमेंट के करीब पहुँच चुके गुप्ता जी के अंदर अचानक से खामोशी छा गयी, शायद उनको भी अपना वानप्रस्थ निकट दिखने लगा था......

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