रविवार, 22 जुलाई 2018

आज के दिये (लघुकथा)

"जीजी, छोड़ो ये दिल्ली-नोएडा का चक्कर, हरियाणा में मेरे देवर एक बहुत अच्छे डॉक्टर को जानते हैं, हिमांशु को बोलो बहु के साथ वहाँ जाकर दिखाए"

"हाँ, भाभी को मैं भी ये ही कह रही थी कि हिम्मत मत हारिए, एक ही जगह अस्पताल थोड़े है, दिया जरूर जलेगा"

बहन और ननद के मुँह से आज फिर वो ही बातें सुनके सरला पूरी तरह झल्ला गयी,

"कहीं नहीं जाएँगे मेरे बच्चे अब दिखाने और दवा खाने, फैसला कर चुके हैं हम, सारे डॉक्टरों की रिपोर्ट ये ही कहती है कि हिमांशु भी बाप बन सकता है और बहु माँ, क्या कारण है कि बेचारे अपनी संतान का मुँह नहीं देख पा रहे ऊपरवाला जाने, पिछले महीने ही इन दवाइयों के साइड इफेक्ट से बहु की तबीयत बिगड़ गई, कल दिया जलानेवाले को लाने की जिद में मैं आज के दियों को आँधी में नहीं रखनेवाली.........

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें