सोमवार, 16 जुलाई 2018

भूख (लघुकथा)

खर्राटे भरती रात के बीच अंतःपुर में चर्चा का माहौल गर्म था। धड़कन बोली, बहनों अब तो हद हो गयी। किलेदार मेरी बिल्कुल भी नहीं सुनता। अबतक न जाने कितनीबार मैंने तेज होकर उसे समझाना चाहा लेकिन कोई फायदा नहीं।

साँस भी परेशान थी "अरे क्या कहूँ मैं? मैंने तो अनेक बार काम बंद करने तक की धमकी दे डाली पर वो तो बस सिद्धांत और नैतिकता की ही सुनता है"

अपने नाखूनों को धार देती पास बैठी भूख का चेहरा थोड़ा और हैवानी हो गया। अपने केशों को झटकते हुए गुर्रायी "चिंता मत करो तुमलोग, अभीतक वो मेरे पंजे में नहीं फँसा। जिसदिन मैं नोचूँगी न उसदिन बाकी सब हवा हो जाएँगे हा हा हा हा" और एक कर्कश अट्टहास सन्नाटे में घुलने लगा.....

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