रविवार, 22 जुलाई 2018

समझदार (लघुकथा)

"अभी दीदी आयी हुई दिल्लीवाली, परसों जाना उनको, कह रही रह जा, मैं परसोंतक रुक जाऊँ?"

"जरूर डीयर, दीदी से काफी दिनों बाद मिली हो, आराम से बातें करो"

"तुम रह लोगे दो दिन और?"

"तो? आखिर इतनी समझदारी तो होनी चाहिए भई हर पति में"

"ओके जी, तो मैं कल कॉल करती हूँ तुमको, गुड नाइट"

कहती हुई राधिका ने फोन कट किया तभी बगल के कमरे से उसे अपने भैया की आवाज सुनाई दी जो भाभीपर आज फिर नाराज हो रहे थे,

"तुमको कितनीबार बोला है कि बार-बार किसी न किसी रिश्तेदार के यहाँ मत चली जाया करो, यार एक मिनट तुम्हारे बिना काटना मुश्किल होता मुझे......"

राधिका को अचानक से जैसे अपनी भाभी की किस्मत से जलन होने लगी कि उसे कोई "समझदार" पति नहीं मिला...

6 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी अपनी परिस्थिति और उसके अनुसार आंकलन ...
    अच्छी कथा ...

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  2. मन की दुविधा भाई सभझदार है या फिर संकेत कि बस ब इतना काफी है भाई के यहां रिहायशी ।
    अंतर द्वंद पैदा करती कथा ।

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  3. मनुष्य का स्वभाव है - जो अपने पास नहीं है उसी को चाहता है।

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