सोमवार, 23 जुलाई 2018

गर्व (लघुकथा)

चंद्रिका बाबू के घर पहुँचा ही था कि बाहर उनका छोटा भाई इन्दर मिल गया

"क्या भाई इन्दर, कैसे हाल-चाल!"

"अरे रामानुज जी, बहुत दिनों बाद भेंट हुई आपसे, सब मजे में है, अपनी कहिए"

"हाँ हम भी मस्त, भैया से मिलने आए थे तुम?"

मेरे इस सवाल पर वह थोड़ा सकुचा गया,

"ज...जी उन्हीं से भेंट करने आया था लेकिन अभी घर का माहौल जरा भारी, लड़के का दसवीं का रिजल्ट खराब हो गया है सो"

अचानक से याद आया कि हाँ, आज तो मैट्रिक का परिणाम जारी होना था लेकिन उनके बेटे के चाल-चलन को अच्छी तरह से जानते रहने के कारण मुझे तनिक भी हैरत नहीं हुई तभी इन्दर के हाथ में थमी थैली पर ध्यान गया

"ये क्या लिए हुए हो?"

"अरे उनको ही देने के लिए लाया था मिठाई किन्तु अभी दिया तो दूसरी बात हो जाएगी, बीवी से शाम को भिजवाऊँगा अब"

"मिठाई किस खुशी में?"

हिचकिचाहटों के बीच भी गर्व ने इन्दर की आँखों में जगह बना ही ली

"मेरी बेटी ने भी दी थी अबकी परीक्षा, उसने अपने स्कूल में टॉप किया है"


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