सोमवार, 23 जुलाई 2018

इलाज (लघुकथा)

डेंटिस्ट स्नेहा का ध्यान आज न जाने किधर था। औजार बार-बार मरीज के मसूड़ों में चुभ जाता और वो चिहुँक पड़ता। वहीं बैठा स्नेहा का पति डॉ. नितिन भी चकित था कि ये आज कर क्या रही है!

"सब ठीक है, गरम पानी से कुल्ला कीजिए ये दवा डालकर" स्नेहा ने पर्ची लिखते हुए कहा। अधेड़ उम्र के मरीज ने भी जाँच समाप्त होने पर चैन की साँस ली।

"ठीक है, बाहर वाली दुकान पर मिल जाएगी न ये?"

"जी, जरूर"

उनके जाते ही नितिन टोक पड़ा।

"ए दिमाग किधर है तेरा? नयी-नयी प्रैक्टिस शुरू की हमने, ऐसे जाँचेगी न तो क्लीनिक जमने से पहले ही मरीज बिदक जाएँगे"

स्नेहा ने औजारों को वापस बक्से में रखा।

"पतिदेव, ये मरीज नहीं मर्ज हैं"

"आँय! क्या मतलब?"

"मतलब ये कि इनको परेशानी कुछ नहीं, दाँत दिखाने के बहाने बहुत कुछ देखने और छूने आते हैं, ध्यान दिया अभी फिर ट्राई मारने में लगे थे!"

नितिन के चेहरे पर भी कुछ गुस्सा आने लगा।

"अच्छा, ये समस्या उनकी!"

"हाँ लेकिन आज थोड़ा इलाज कर दिया है मैंने, नहीं ठीक हुए तो अगलीबार...हाहाहा" स्नेहा ने दाँत उखाड़ने वाली चिमटी उठाकर चमकाई। उनदोनों की प्यारी सी हँसी देखकर क्लीनिक भी मानों मुस्कुराने लगा था।

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