अमीन ने अपना काम लगभग पूरा कर लिया था। गृहस्वामी सत्येन्द्र बाबू खुद पूरी कार्यवाही की निगरानी कर रहे थे। घर की चौड़ाई तो कोई ज्यादा थी नहीं कि जिसे दोनों बेटों में बीच से बाँटा जा सके। इसके अलावा बने-बनाए घर को बीच से बाँटना भी तकनीकी रूप से कठिन था सो निर्णय हुआ कि एक-एक तल्ले दोनों को दे दिए जाएँगे और ये पिछवाड़े की खाली पड़ी जमीन बराबर-बराबर बीच से विभाजित कर ली जाएगी। वैसे तुरंत अभी हिस्सा लगाने की कोई विवशता थी नहीं। घर का वातावरण सुखद था लेकिन अपने अनुभवों के आधार पर सत्येन्द्र जी ने खुशी-खुशी के बीच ही बँटवारा कर देना ठीक समझा। अमीन ने नापी का काम समाप्त कर एक छोटा सा खूँटा जमीन के बीचोंबीच गाड़ा और कागजी काम करने बैठ गया। तभी छोटा बेटा महेन्द्र बोल पड़ा
"अमीन जी, गड़बड़ का काम मत करिए"
सबकी आँखें उसकी ओर उठ गईं कि ये अचानक इसे क्या हुआ! कोने में बैठी भाभी-देवरानी ने भी ध्यान न देने का दिखावा तो किया लेकिन कान आगे होनेवाले संभावित घटनाचक्र को भाँप सजग हो उठे। महेन्द्र आगे आया और खूँटा उखाड़ के बोला,
"फीता लाइए अपना"
"अरे भैया आपके सामने तो नापा सब..."
"लाइए तो"
अमीन ने फीता उसको पकड़ा दिया। महेन्द्र ने खूँटेवाले निशान से दो फीट अंदर अपने हिस्से में नाप ली और खूँटे को वहाँ गाड़ के हँसने लगा,
"हाहाहा भाभी, भैया को दो फीट ज्यादा जमीन टैक्स में दे दी है, बचपन से हर चीज में दो ज्यादा लेता आया है कि दो साल बड़ा मुझसे"
सबकी सम्मिलित हँसी के बीच आसपास की छतों से वहाँ किसी तमाशे की आस लगाए पड़ोसी अपना सा मुँह ले हटने लगे थे।
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