सोमवार, 16 जुलाई 2018

दिल की बात (बोधकथा)

उबकर एकबार पारिजात ने पूछ ही लिया

"अरे ओ चकोर, ये क्या रोज-रोज रात को चाँद को ताकता रहता है? कभी उससे कह दे अपने दिल की बात"

चकोर के चेहरेपर टीसभरी मुस्कान आई

"चाहता तो मैं भी यही हूँ दोस्त और मुझे पता है कि जिसदिन मैं बुला लूँगा वो सबकुछ छोड़कर मेरे पास आ जाएगा लेकिन तू खुद देख वो कितने सुख से आसमान की गोद में तारों से खेल रहा है और यहाँ मेरे पास क्या है
उसे देने के लिए सिवाए इस जंगल के?? वो जहाँ रहे सुखी रहे ये ही मेरी इच्छा है, मैं उसे खुशहाल देखकर ही खुश हो लूँगा।

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