सोमवार, 23 जुलाई 2018

मिठास (लघुकथा)

सलोनी खिन्न रहने लगी थी। उसके पति शेखर को इतनी कम उम्र में मधुमेह...क्यों हुआ? कैसे हो सकता है ये? देखा ही क्या अभी जिंदगी में उसने? बिना मीठे के कैसे रहेगा वह? कितने पसंद थे उसे रसगुल्ले, खीर...ओहह। कलेजा बार-बार मुँह को आता। आज आखिर चाय बनाते समय शेखर के लिए फीकी चाय निकाल के अपने हिस्से की में चीनी डालते-डालते उसके हाथ रुक ही गये।

"छोड़ो, मैं भी नहीं लूँगी चीनी, जब मुझे हर पल मिठास की अनुभूति करानेवाला ही फीका जीवन जी रहा तो मैं क्यों पीछे रहूँ!"

चाय बर्तन से दोनों कपों में भरने लगी तभी शेखर बाजार से खरीदी सब्जियाँ वहीं उसे देने आ गया। उसने सीधे चाय बनानेवाले बर्तन से चाय कपों में जाती देखी तो निराश सी मुस्कान लिए बोला।

"आज मेरे हिस्सेवाली में भी चीनी डाल दी क्या भूल से?"

"नहीं, अपनीवाली में भी नहीं डाली, एक जैसी ही बना ली"

"क्यों भई?"

"मुझसे भी अब चीनी नहीं खाई जाएगी"

शेखर ने प्यार से सलोनी के गाल पर चिकोटी काटी और दो चम्मच चीनी उसकी चाय के कप में मिला दी।

"ये मुझे चीनी न खाने की घुटन डबल करवाने का आइडिया दुबारा मत लाना दिमाग में, एक तो मुझे छूट गयी, उसपर से इन मैडम जी को फीका खाते देखो, हद है"

"अरे लेकिन..." सलोनी ने उसको रोकना चाहा लेकिन तब तक शेखर अपना काम कर चुका था।

"बिना मीठे के कमजोरी हो जाती है स्वस्थ मनुष्य को, तुम कमजोर हो गयी तो मुझे कौन देखेगा? मेरा भी स्वार्थ है न! हाहाहा"

"चुप बदमाश..."

सलोनी शेखर के मजाक करनेवाले स्वभाव से परिचित थी। दोनों चाय पीने लगे। एक चम्मच चीनी लेनेवाली सलोनी को आज दो चम्मच चीनी वाली चाय भी मिठास से दूर लग रही थी लेकिन शेखर की फीकी चाय का स्वाद बहुत मीठा हो चुका था।

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