बुधवार, 1 अगस्त 2018

मजा (लघुकथा)

"कल बहुत मजा आया, हम चारों बहनें एकसाथ थीं, सबका परिवार भी"

"अच्छा!"

"हाँ खूब बातें की, खूब हाहा-हीही हुई छतपर"

"सही बात है, कई दिनों बाद सभी से मिलना जैसे रेगिस्तान में पानी मिल गया"

"हाँ रे, वो तो छोटी वाली कह रही थी कि मन कर रहा डीजे बुला लूँ"

"हाहा तो बुलाया क्यों नहीं!"

"तू और बोल, मार खानी थी क्या हमको!"

"मार! वो क्यों?"

"अरे चाचाजी की तेरहवीं में मिले न हम, अब वैसे में डीजे बजाते क्या! हाहाहा"

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