एमसीए फाइनल ईयर की छात्रा मधुमिता अपनी
काउंसेलिंग क्लास से शाम को घर लौटी तो देखा कि दरवाजे पर किसी की कार लगी थी. पास
जाते-जाते पता चल गया कि उसके पापा के दोस्तों में से एक और शहर के मशहूर कार
शोरूम के मालिक विनय कुमार आये हुए हैं. साथ में शायद पूरा परिवार भी है!
अन्दर घुसते ही उसकी नजर अपने पापा पर पड़ी जो
पूरे जोश के साथ उनकी आवभगत में लगे थे. मधुमिता की आहट पाते ही उसकी ओर देखा और
चहक के बोले,
“आ गयी-आ गयी, शांतनु प्रसाद की बेटी और
सुष्मिता प्रसाद की राजकुमारी आ गयी”
सबके चेहरे खिल उठे. माँ ने मुस्कुराकर उसका हाथ
पकड़ा और अपने पास बिठा लिया. विनय बोले,
“कैसी हो बेटा?”
“जी अच्छी हूँ अंकल...” मधुमिता ने भी मुस्कान
के साथ कहा. विनय की पत्नी सुमिता ने पास बैठे नौजवान का परिचय उससे कराते हुए
कहा,
“ये ऋषभ है...बड़ा वाला बेटा हमारा...इसी साल
अपनी पढाई पूरी कर ली ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग की, कैंपस भी हो गया है फोर्ड में...”
“अच्छा...” मधुमिता मुस्कुराने की कोशिश करती
हुई बोली और हाथ हिलाकर ऋषभ का औपचारिक अभिवादन किया
“हाय”
बातों का सिलसिला फिर से शुरू हो गया. मधुमिता
अब असहज हो रही थी. उसके दिमाग तेजी से सोचने लगा कि विनय अंकल पापा के दोस्त जरूर
हैं लेकिन इस तरह पूरे परिवार के साथ कभी नहीं आये! ये दोस्ती बिजनेस के स्तर तक
ही ज्यादा सिमित है. पापा का लैपटॉप का शोरूम और विनय अंकल का कार का. किसी को कार
लेनी हो तो पापा उसे विनय अंकल के पास भेज देते हैं और किसी को लैपटॉप-कम्प्यूटर
खरीदना हो तो विनय अंकल उसको पापा के पास. ये एक तरह का अनुबंध सा है दोनों के
बीच.
इसके अलावा कभी विनय अंकल आते भी हैं तो ठन्डे
आदि तक बात सीमित रहती. आज मिठाइयों का ढेर लगा है! सारी बातचीत भी उसे और ऋषभ को
केंद्र बना के हो रही! उसको शक होने लगा कि हो न हो, ये लोग रिश्ते के लिए ही आये
हैं! उसने तुरंत अपना बैग सम्हाला और उठती हुई बोली,
“आंटी, मैं जरा फ्रेश होकर आई...”
“हाँ-हाँ जाओ बेटा...” सुमिता ने उसके हाथ पर
थपकी देकर कहा. मधुमिता अन्दर गयी और किचन में जाकर खड़ी हो गयी. उसके आने में देर
होती देख माँ सुष्मिता उसे ढूँढती अन्दर आई. मधुमिता के चेहरे पर पसरा गुस्सा
देख डरते-डरते ही पूछा.
“य...यहाँ क्या कर रही तू?”
“आग लगा के मरने जा रही हूँ” मधुमिता जैसे फट
पड़ी “ये फिर से मेरे लिए रिश्ता ले आये न पापा!”
“अरे नहीं...” माँ ने उसको फुसलाना चाहा “य...ये
लोग त...तो बस ऐसे ही आये...मिल...” उसकी बात अधूरी रह गयी. मधुमिता धीमी लेकन
जलती हुई आवाज में गरज पड़ी,
“दूध पीती बच्ची समझ रखा है मुझे? मुझे भी पता
है कि वे क्यों आये हैं?”
सुष्मिता ने आगे कुछ कहना सही नहीं समझा और
चुपचाप वापस जाकर उनलोगों के बीच बैठ गयी. मधुमिता को न लौटता देख और सुष्मिता के
चेहरे पर छाई असहजता से शांतनु ने पूरी बात बिना उसके कहे ही जान ली.
उनके जाने के बाद शांतनु चुपचाप अपने कमरे में
जाकर टीवी ऑन कर लेट गये. घर में चुप्पी छाई रही. रात को सुष्मिता से पूछा,
“महारानी जी ने क्या बोला?”
“क्या बोलेंगी?” सुष्मिता ने ठंडी साँस भरते हुए
उत्तर दिया “वही पुरानी रट...शादी से मना कर रहीं हैं!”
“हम्म” शांतनु मायूसी से बोले, “मुझे इसी बात का
डर था, इसलिए मैंने विनय से सीधे शादी की बात के लिए नहीं बोला, बस इशारों में ही
कहा था कि सब के साथ आकर मिल ले, सोचा कि उसका बेटा अगर महारानी जी को पसंद आ
जाएगा तो आगे बात खुलकर करेंगे!”
“अब सो जाइए” सुष्मिता मच्छरदानी दबाती हुई
बोली, “उसने कान इधर ही लगा रखे होंगे, बहुत मुश्किल से उसको समझाया मैंने कि वे
लोग रिश्ते के लिए नहीं बल्कि ऐसे ही मिलने आये थे, सच पता लगा तो फिर झगडा करेगी
मुझसे”
॰॰॰
बरसात का मौसम आ गया. शांतनु चुपचाप अपने शोरूम
में बैठे बाहर की तेज बारिश को निरुद्वेग भाव से निहार रहे थे. शादी-विवाह का एक
और सीजन निकल चुका था. बीती बातें मन में उमड़-घुमड़ कर रही थीं. अपने पिता का अचानक
गुजर जाना, मात्र अठारह की उम्र में दो छोटी बहनों की जिम्मेदारी, उनके ब्याह के
लिए सभी रिश्तेदारों का हाथ खींच लेना...
शांतनु सोच रहे थे कि अगर उनके साथ भी ऐसा ही
कुछ हो गया तो क्या होगा? मान लिया कि आज समय पहले जैसा नहीं, मधुमिता भी पढ़ी-लिखी
है लेकिन शादी केवल किसी बेसहारा को किसी सहारे से बाँधने भर का नाम नहीं. ये एक
नये परिवार का निर्माण है. परिवार का विकल्प भला कौन हो सकता? बाकी सब के सब दोस्त-रिश्तेदार
तो बस अपने मतलब से पास आते और फिर दूर हो जाते हैं.
तभी अपने स्टाफ की आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ.
“सर, महेश बाबू जी ये लैपटॉप आपको देने के लिए
कह गये थे सुबह...”
“हँ...हाँ लाओ...” शांतनु ने लैपटॉप ले लिया. कल
रात ही महेश बाबू से उनकी बात हुई थी. उनके बेटे का लैपटॉप था जो कि उनकी ही दुकान
से लिया था उनलोगों ने. कोई खराबी आ गयी थी सो रिपेयर के लिए दे गये थे. वैसे तो
शांतनु का शोरूम था और वे रिपेयर जैसा कोई काम अपने यहाँ न करा के ग्राहक को
सर्विस सेंटर जाने को बोल देते थे लेकिन बड़े कपडा व्यवसायी महेश बाबू से उनकी
पुरानी दोस्ती थी. सो उनका काम वे खुद कर देते थे.
उन्होंने लैपटॉप लिया और खुद ही देखने लगे.
बारिश के कारण अभी कोई ग्राहक नहीं आया था.
॰॰॰
धीरे-धीरे मधुमिता की पढ़ाई खत्म होने पर आ गयी.
उसे इस हफ्ते इंटर्नशिप के लिए दिल्ली जाना था. वह तैयारियों में जुटी थी. आज जब
खरीदारी कर लौटी तो देखा कि घर का माहौल तनावपूर्ण था. शांतनु कह रहे थे,
“बार-बार एक ही बात नहीं होगी यहाँ...हद होती है
किसी भी चीज की!”
“देखिए बात समझिए” सुष्मिता समझाने की कोशिश कर
रही थी, “उसको इंटर्नशिप से लौट आने दीजिए, तब आराम से बात करेंगे”
“कौन सा उसको रोक रहा मैं जाने से?” शांतनु
मानने के मूड में नहीं थे. उन्होंने कहा, “बात उसको बता देनी है बस, आगे का काम
उसके लौटने के बाद ही होगा”
“मम्मी, क्या बात हुई?” मधुमिता ने सामान टेबल
पर रखते हुए पूछा. सुष्मिता कुछ कह नहीं पा रही थी. शांतनु ने उसकी परेशानी दूर कर
दी और खुद ही बता दिया,
“तुम्हारी शादी मैंने ठीक कर दी है, ये बात हुई”
“क्या” मधुमिता का गुलाबी चेहरा अचानक फक्क पड़
गया. सुष्मिता ने घबरा के उससे कहा,
“नहीं-नहीं, अभी ठीक नहीं हुआ है कुछ...पापा कह
रहे तुम्हारे कि ठीक कर देंगे अगर तुमको मन हुआ तो...”
“ठीक कर देंगे!” शांतनु ने व्यंग्य से आँखें
तरेर के कहा, “मैं इससे पूछ नहीं रहा हूँ, इसको बता रहा हूँ, इसकी शादी ठीक हो
चुकी है, कल वो लोग देखने आएँगे इसको”
“पापा मैंने आपसे कहा न कि मुझे अभी शादी नहीं
करनी!” कहते-कहते मधुमिता कुर्सी पर बैठ गयी और रोना शुरू कर दिया.
“रोना बंद करो” शांतनु ने कड़े स्वर में कहा,
“अरे बिजनेस वाला आदमी हूँ, आज सबकुछ ठीक चल रहा, कल को ऊपर-नीचे हुआ कुछ तो कहाँ
से कोई काम करूँगा? कोई नहीं आएगा तब मदद करने...और कहीं अपने पिता की तरह मैं भी
समय से पहले मर गया न तो झखते रहना बैठ के...इस रिश्तेदार से उस रिश्तेदार तक
दौड़ना...कोई चाय तक के लिए नहीं पूछने वाला है”
सुष्मिता भी मधुमिता के पास जाकर बैठ गयी और
उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“पहले देख लो एकबार लड़के को, उसके बाद जैसा
कहोगी...”
“फिर वही बकवास?” शांतनु ने उसको बीच में ही रोक
दिया, “मैंने बोला कि शादी ठीक हो गयी मतलब हो गयी! ये बिना मतलब की देखा-देखी का
कोई काम नहीं है...”
“आपका दिमाग खराब तो नहीं हो गया?” अब सुष्मिता
को भी गुस्सा आने लगा. वह बोली, “आज तक इसकी बात मानते-मानते ये अचानक क्या भूत चढ़
गया है आपको? कौन लड़का मिल गया और कौन सा ऐसा खानदान मिल गया जो इस तरह जिद पर अड़
गये हैं?”
“महेश बाबू का बेटा है आनंद, ये रही उसकी फोटो”
कह के शांतनु ने लड़के की तस्वीर जेब से निकाल के टेबल पर रख दी. सुष्मिता ने माथा
पीट लिया.
“ये ही मिला है अब? अच्छे-अच्छे नौकरीपेशा को
हमने लौटा दिया और ये सिंपल एमए कर के घर बैठा लड़का लेकर आ गये! देखिए, घबराने की
कोई जरूरत नहीं, इसकी शादी अच्छे घर में हो जाएगी...”
“घर नहीं बैठा है ये...अपने बाप की गद्दी पर
बैठता है और लाखों की कमाई है महीने में इनलोगों की भी...”
“अरे लेकिन...” सुष्मिता ने कुछ कहना चाहा लेकिन
मधुमिता ने रोक दिया.
“मम्मी बस...” वो अपने आँसू पोंछती हुई बोली,
“बंद करिए ये बहस! तंग आ गयी हूँ मैं रोज-रोज की ऐसी बातों से...भाड़ में गयी मेरी
पढ़ाई और भाड़ में गया मेरा कैरियर, शादी ही सबकुछ है तो मैं शादी के लिए तैयार हूँ”
कहती हुई वो अपना सामान उठा के अपने कमरे में
चली गयी. सुष्मिता चिंतित मुद्रा में वहीं बैठी रही. शांतनु अपने शोरूम के लिए
निकल गये. दिन भर सुष्मिता ने मधुमिता पर ही आँखें जमाये रखी कि कहीं गुस्से में
आकर वो कुछ कर न बैठे!
रात को अपने बेडरूम में आते ही उसने दरवाजा बंद
किया और धीमी लेकिन सख्त आवाज में शांतनु से उलझ गयी.
“आपको ये क्या सूझा आज? तैश में कुछ कर लेगी वह
तो? मैं भी उसके बिना जिन्दा नहीं रहने वाली...”
“मैं उसके बिना रह जाउँगा क्या?” शांतनु ने आराम
से किताब पढ़ते हुए कहा.
“तो...तो फिर उसको जबरदस्ती ऐसे....” कहते हुए
सुष्मिता ने किताब उनके हाथों से ले ली.
“कोई जबरदस्ती नहीं की मैंने, जरा महारानी जी के
कमरे में तो झाँक के देखो” शांतनु बोले,
सुष्मिता ने दबे पाँव जाकर धीरे से मधुमिता के
कमरे में झाँका. वो मजे से टीवी पर आ रहे गाने की धुन पर अपने हाथ-पैर हिला रही
थी. सुष्मिता दंग रह गयी. वह शांतनु के पास आई और हैरानी के स्वर में बोली,
“वो तो नाच रही है! सुबह उतना बवाल किये
थी...इसका मतलब क्या?”
“इसका मतलब ये” कहते हुए शांतनु ने अपना मोबाइल
उसे दिखाया. सुष्मिता की तो आँखें फटी की फटी रह गयीं. उसमें मधुमिता और आनंद की
कई तस्वीरें थीं जिनमें वे एक-दूसरे के साथ बैठे थे किसी कपल की तरह.
उसने शांतनु की ओर देखा. उसके कुछ कहने से पहले
शांतनु खुद ही बोल पड़े,
“हाँ, ये दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं...”
“उसकी तो...” सुष्मिता गुस्से से उठी, “अभी खबर
लेती हूँ प्यार की नानी की...”
“अरे-अरे बैठो चुपचाप...” शांतनु ने उसका हाथ
पकड़ के उसे बिठा लिया.
“आपको ये तस्वीरें मिली कहाँ से?” सुष्मिता ने
पूछा.
“पिछले महीने महेश बाबू, आनंद का लैपटॉप ठीक
करने के लिए दे गये थे, उसी में एक फोल्डर में मिले ये फोटो, आनंद महाशय ने सोचा
होगा कि उन्होंने सबकुछ मिटा दिया है लेकिन बैकअप लेने के दौरान सब मुझे दिख गया”
“तो! आपको गुस्सा नहीं आया?”
“हाहाहा हाँ उस समय आया था” शांतनु ने हँसते हुए
कहा, “किन्तु बाद में मुझे आपके पिताश्री याद आ गये”
शांतनु का संकेत समझ सुष्मिता के चेहरे पर अचानक
से खिसियानी हँसी दौड़ गयी लेकिन उसने फिर गंभीर मुँह बना लिया. शांतनु ने आगे कहा,
“याद नहीं! जब तुम्हारे पिताश्री ने तुम्हारा,
मेरे नाम लिखा पत्र अखबार में छिपा देख लिया था तो कितना जम के हंगामा किया था?”
“हाँ-हाँ याद है...” सुष्मिता इसबार अपनी हँसी
नहीं रोक पाई. शांतनु ने उसे छेड़ते हुए कहा,
“बाद में कितनी मेहनत से मैं आधी रात को बाइक
लेकर तुम्हारे घर के पीछे आया और तुम खिड़की से कूद के...”
“ए वो सब छोडिये...” सुष्मिता किसी युवती सी लजा
गयी, “अभी की बात करिए कि आगे क्या करना...”
“करना क्या?” शांतनु बोले, “तुम्हारी ही बेटी है
वो, जैसे तुम मेरे साथ भाग गयी थी, वो भी उस आनंद के साथ भाग गयी तो?”
“मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा क्या कहूँ...”
सुष्मिता दुविधा में पड़ गयी.
“कन्फ्यूज मत हो” शांतनु ने उसके कंधे पर हाथ
रखा और समझाते हुए बोले, “मैंने इस मामले में पूरा श्योर होने के बाद ही मैंने बात
आगे बढ़ाई. जब मुझे ये तस्वीरें मिलीं तो उसके बाद एक दिन मैंने मधु का मोबाइल भी
चेक किया. हालाँकि उसने पासवर्ड लगा रखा था लेकिन मुझे वैसे पासवर्ड खोलने में समय
ही कितना लगता? मैंने उनदोनों का चैट रिकॉर्ड देखा. उसके बाद ही महेश बाबू से शादी
की बात छेड़ी. वे तुरंत राजी हो गये. पुराना संबंध उनसे मेरा...”
“अरे पागल...” सुष्मिता ने शांतनु को प्यार से
एक चपत लगा के कहा, “तो वैसा ड्रामा करने की क्या जरूरत थी? सीधे सारी बात कह देते
सुबह!”
“सीधे कह देते सुबह...” शांतनु ने मुँह बना के
उसे चिढ़ाया और बोले, “अब इस पूरी स्टोरी के तीन ही एंड थे, पहला मैं तुम्हारे
पिताश्री की तरह बवाल कर के भागमभाग कराता, दूसरा तुमलोगों को सबकुछ साफ-साफ बता
के मामला निपटा लेता और तीसरा जैसे आज किया, वैसे ही कुछ मजे ले लेता...सो मैंने
तीसरा वाला विकल्प ही चुना और थोड़े मजे ले लिए. देखा कैसी नौटंकीबाज हो गयी है
महारानी! हमारे सामने त्याग करने का बहाना मार गयी! कि पापा के कहने पर शादी कर
रही हूँ!”
अब तो सुष्मिता को जोर से हँसी आने लगी. मधुमिता
अपने कमरे से निकल आयी,
“मम्मी, कोई खास बात हुई क्या?”
“नहीं-नहीं...” सुष्मिता ने मुश्किल से अपनी
हँसी रोकते हुए कहा, “तूने अपने पापा की खुशी के लिए अपना कैरियर-वैरियर सब
छोड़-छाड़ के शादी के लिए हाँ कह दी न! वही तेरी तारीफ कर रहे हम...”
कहते-कहते उसको ठहाके फिर से निकलने लगे. शांतनु
ने धीरे से उसकी पीठ पर चिकोटी काट चुप रहने का इशारा किया और मधुमिता से बोले,
“हाँ-हाँ बेटा, तू जा टीवी देख...”
मधुमिता को कुछ समझ नहीं आया. वह अचम्भे से
उन्हें ताकती हुई चली गयी. सुष्मिता, शांतनु की गोद में सिर रख के लोटपोट होती हुई
बोली,
“चलो जो हुआ सो हुआ, कम से कम बेटी ने हाँ कह
दी...” (समाप्त)
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