रविवार, 26 अगस्त 2018

क्षणिकाएं

(1)
स्फुटित होते शब्द अंतःकरण में
किन्हीं कारणों से रद्द कर देते हैं
जिह्वातक अपना आना
किन्तु
भिजवा देते हैं भावों के हाथों
नयनों को संदेशा
तुम चाहो तो
उनसे सब हाल पता कर सकते हो

(2)
पनप रहे होते हैं
निःशब्दता की छाया में भी
अनकहे भावों के कई पौधे
यदि ये भूमि प्रेमयुक्त होती
इक बगिया होती
हमारे घर...

(3)
दर्द...
ज्यादा होता बाद में
अच्छा हुआ
कोख में ही मर गया
वो सपना सुहाना

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