वीरपुर की रानी रक्षिका
अपनी प्रजा से मिलकर वापस लौट रही थी कि अचानक रथ के घोड़े नियंत्रण से बाहर हो
गये। अंगरक्षक कुछ समझ पाते इससे पहले ही रथ उनकी आँखों से ओझल हो चुका था।
"सारथी, सम्हालो रथ को" रक्षिका किसी प्रकार गिरने से बचती हुई
चीखी। खुद को किसी अनजान रास्ते पर देख उसका मन घबराने लगा था। सारथी भी परेशान
था।
"ज...जी महारानी जी, म...मैं प्रयास
कर रहा हूँ लेकिन..." उसके कहते-कहते रथ पलट गया और रक्षिका पास की खाई में
जा गिरी।
"महारानीऽऽ" रथ के नीचे दबा सारथी चिल्लाता
रह गया। तीखी ढलान से लुढ़कता रक्षिका का शरीर जब शांत हुआ तो उसने अपनेआप को एक
घाटी में पाया। आश्चर्य की बात ये कि इतनी ऊँचाई से गिरने के बाद भी उसे कोई चोट
नहीं आयी थी। उसने चारों ओर नजरें दौड़ाईं। हरा-भरा स्थान था
परंतु विचित्र। वहाँ जो पौधे लगे थे वे देखने में बिल्कुल पेड़ों जैसे थे लेकिन
आकार में एक हाथ भर ही। अचंभित होकर वह उस जगह को देखने लगी। तभी एक आवाज आई।
"महारानी"
उसने आसपास देखा। कहीं
कोई नहीं था। आवाज फिर से आई। रक्षिका ने पाया कि जमीन पर राजसी वस्त्र पहने एक
बुढ़िया खड़ी थी जो बिल्कुल गुड़िया जितनी ही बड़ी थी लेकिन उसका रंग श्याम-श्वेत
था।
"आप कौन हैं?" रक्षिका ने पूछा।
"मैं माला, यहाँ की
रानी"
"लेकिन आप सब इतने
छोटे..."
"हाँ, हमारा आकार इतना
ही रहता" माला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया।
"और आपका रंग
ऐसा..." रक्षिका की बात पूरी होने से पहले ही माला रो पड़ी।
"एक दुष्ट
जादूगरनी रंगना हमारे रंग चुरा के ले गयी है"
"मगर क्यों?"
"वह हमारी इस जगह
पर अपना महल बनाना चाहती है, हमने अगर उसे ये स्थान दे दिया तो रहेंगे कहाँ? इसलिए वह हमें
डराने के लिए हमारे रंग ले गयी, हमारे ज्योतिषी की गणना के अनुसार केवल आप ही
उसे हरा सकतीं, इसलिए हमने आपको अपने जादू से यहाँ बुलवाया, हमारी रक्षा
करिए"
कहते-कहते उसका रोना तेज
हो गया। रक्षिका ने उसे ढाढस बँधाया।
"घबराइए मत, हम आपकी सहायता
करेंगे, बताइए ये रंगना मिलेगी कहाँ?"
तब तक वहाँ के और निवासी
भी वहाँ आ पहुँचे थे। सबने रक्षिका को प्रणाम किया और रक्षा की गुहार लगाई।
माला बोली "महारानी, आपको मेरी ये
जादुई चटाई रंगना तक ले जाएगी, हम आपके साथ नहीं जा सकते, वह हमसे अधिक शक्तिशाली है"
रक्षिका उस पर बैठ गयी।
चटाई उड़कर आसमान में टँगे एक घर के बाहर जाकर रुक गयी। रक्षिका ने अगल-बगल देखा
फिर सावधानी से उस घर में घुसी। देखा कि एक बड़े-बड़े दाँतों और नाखूनों वाली औरत
कड़ाही में कुछ पकाती हुई बड़बड़ा रही थी।
"कब तक, आखिर कब तक वे छोटे-छोटे लोग मेरी बात नहीं मानेंगे! अभी तो
बस रंग चुराया है, ज्यादा होशियारी
की तो पेड़-पौधे भी चुरा लूँगी उनके, मुझे इस दुनिया की रानी बनना है हाहाहा"
रक्षिका समझ गयी कि रंगना
यही है। वह उसके सामने गयी और बोली।
"अरी दुष्टा, क्यों उन नन्हें लोगों को कष्ट दे रही? उनके रंग लौटा
दे"
"तू कौन है?" रंगना गुस्से से चिल्लाई।
"मैं रक्षिका, वीरपुर की महारानी, उन नन्हें लोगों
को उनकी रक्षा का वचन देकर आयी हूँ"
"हाहाहा तो तू करेगी उनकी रक्षा! ले पहले अपनी
रक्षा तो कर"
कहती हुई रंगना ने अपनी
कड़ाही से एक कटोरा तरल निकाल के रक्षिका पर फेंका। रक्षिका उछल के वहाँ से हट
गयी। तरल दीवार पर जहाँ लगा, वह हिस्सा भी रंगहीन हो गया। इसके बाद रंगना ने अपने हाथ आगे किये। उसके लंबे-लंबे
नाखूनों के अगले हिस्से निकल कर रक्षिका की ओर बढ़े लेकिन अब तक रक्षिका ने अपनी
पीठ पर टँगी ढाल निकाल ली थी। अपने दो वारो को बेकार हुआ देख रंगना अदृश्य हो गयी।
रक्षिका का हृदय काँप उठा। वह समझ गयी कि रंगना कहीं भागी नहीं है बल्कि उसकी ओर
ही बढ़ रही होगी। उसने आँखों पर पट्टी बाँध के लड़ने की कला भी सीखी हुई थी सो
उसने उसी कला का उपयोग करने का निर्णय किया और अपनी आँखें बंद कर के ध्यान से
आसपास हो रही आवाजों को सुनने लगी। अचानक उसे बिल्कुल अपने पीछे किसी के साँसें
सुनाई दी। उसने फुर्ती से पीछे मुड़ के अपने सधे हाथों का प्रहार किया। जादूगरनी
रंगना दर्द से बिलबिलाती हुई प्रकट होकर जमीन पर गिर गयी। चोट उसकी गर्दन पर लगी
थी। रक्षिका को पता था कि अधिकतर जादूगरनियों की
शक्ति उनकी चोटी में होती है। उसने अपने चाकू से रंगना की चोटी काट ली। रंगना
गुस्से से चीखी।
"दुष्टा, मेरी चोटी मुझे
वापस कर"
रक्षिका समझ गयी कि रंगना
की ताकत समाप्त हो चुकी है। उसने चोटी को वहीं रखे चूल्हे में झोंक दिया।
"तुझ जैसी
जादूगरनी को कमजोर ही रहना चाहिए"
चोटी के जलते ही रंगना और
उसका महल वहाँ से गायब हो गये तथा रक्षिका नीचे गिरने लगी लेकिन माला की चटाई ने
उसे अपने ऊपर ले लिया। नीचे उतरते ही माला भाग के रक्षिका के पैरों में गिर पड़ी।
उन सबके रंग वापस आ चुके थे और बहुत सुंदर लग रहे थे।
"आपका धन्यवाद
कैसे कहूँ महारानी?" माला ने आँसू भरी आँखें
लिए कहा।
"बस अपना आशीर्वाद
देकर" रक्षिका ने मुस्कुरा कर माला को प्रणाम किया। "अब चलती हूँ, हमारे पति महाराज
बाहुपाश हमसे बहुत प्यार करते हैं, वे चिंता में
होंगे"
"ठीक है महारानी, बस किसी को हमारी
इस दुनिया के बारे में मत बताइएगा, हमारे लिए कहीं
कोई नया संकट न आ जाए" माला ने निवेदन किया। रक्षिका ने सहमति मे सिर हिलाया।
"जरूर, बस ये बता दीजिए
कि हम लौटें कैसे?"
माला ने चटाई को
संकेत किया और वह रक्षिका को लेकर ऊपर की ओर उड़ गयी। महाराज बाहुपाश सैनिकों के
साथ रक्षिका की खोज में जुटे थे। उनसे थोड़ी दूर पर ही रक्षिका ने उस चटाई को विदा
किया और उनके पास गयी। बाहुपाश ने उसे गले लगा लिया।
"आप कहाँ
थीं महारानी, आपको चोट तो नहीं आयी?"
"नहीं
महाराज, बस नीचे गिर के रास्ता भटक गये थे, यहाँ तक आने में
समय लग गया"
रक्षिका ने
मुस्कुराते हुए कहा। सब वापस चल पड़े। खुशियों के रंग चारों ओर जगमगाने लगे थे
(समाप्त)।
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