बुधवार, 12 दिसंबर 2018

दिलवाला आम (कहानी) Dilwala Aam (Hindi Kahani)

मालती देवी अचार के लिए कच्चे आम काट रही थी. पंखा पूरे जोर पर था लेकिन तब भी पसीना आ जाता. कच्चे आम होते ही इतने कड़े! हँसुआ बार-बार ऐसे लगता मानों अब टूटा कि तब टूटा. पास बैठे अखबार पढ़ रहे मालती के पति डॉक्टर श्याम ने टोका,

“अरे हाथ कट जाएगा तुम्हारा तब मानोगी? लाओ न मैं काट देता हूँ!”

मालती ने माथे पर छलकता पसीना पोंछा और बोली,

“न-न, हो जाएगा, आप बैठिए आराम से...वैसे भी रोज तो सबका पेट, गला काटते ही हैं ऑपरेशन के लिए!”

और हँसती हुई वापस अपने काम में जुट गयी. खीज के श्याम ने भी मुँह वापस अखबार में घुसा लिया. जानते थे कि ये नहीं मानने वाली. प्रधानाध्यापिका है, घर में दो-दो नौकरानियाँ लगी हुईं तब भी जब तक खुद न जुते, चैन कहाँ! आज रविवार मिला तो फिर शुरू हो गयीं मैडम! अरे अब उम्र हो रही सेवानिवृत्ति की, थोड़ा आराम करने की आदत डालनी चाहिए मगर क्या कहा जाए!

तभी मालती बोल पड़ी,

“अरे देखिए न! ये कैसा आम निकला, एकदम दिल जैसा”

श्याम ने देखा तो मालती के हाथ में सचमुच एक दिल जैसा आम था! उनको हँसी आ गयी. उन्होंने कहा,

“अच्छा हुआ जो यहाँ आ गया, तुम इसको पूरे प्यार के काटोगी, और कोई होता तो...”

उनकी बात अधूरी रह गयी. मालती बीच में ही कह उठी,

“ए, मेरा मन नहीं कर रहा इसको काटने का”

“क्यों भई?” श्याम ने पूछा.

“दिल तो पहले से उदास है, ऊपर से अब उसपर चाकू चलाने को कहिए आप...”

मालती ने थोड़ा उदास सा मुँह बना के कहा. श्याम उसका संकेत समझ गये. दोनों बेटे अपनी-अपनी जिन्दगी में व्यवस्थित हो चुके थे और अपने लिए नये-नये घर भी ले चुके थे. कईबार बात उठी कि वे अपने-अपने नये घरों में जाना चाहते हैं लेकिन श्याम ने हर बार रोक लिया कि कम से कम अपनी एकलौती बहन की शादी होने तक यहीं रुक जाओ. कुछ सालों की तो बात! हमारे साथ रहने में क्या दिक्कत? और कौन सा घर कोई उठा के ले जाएगा? अपने भरोसेमंद लोगों को किराए पर रखा हुआ वहाँ.

उन्होंने घर हालाँकि उसी शहर में लिया था लेकिन अपनी संतान से पलभर के लिए भी अलग होना कौन माँ-बाप चाहते? सो दस बहाने उन्हें रोकने के होते रहते. कुछ दिनों से फिर ये माँग जोर पकड़ रही थी. छोटे बेटे की पहली संतान होने के बाद वह भी अपने लिए एक अलग ठिकाना चाहने लगा था. दो परिवारों का एक साथ रहना आज के जमाने में बहुत मुश्किल भी तो! घर में आजकल फिर हल्की शीतयुद्ध सी स्थिति चल रही थी.

श्याम ने फिर से आँखें अखबार पर टिका लीं. तभी वहीं खेल रही उनके बड़े बेटे की बेटी मिन्नी वहाँ दौड़ी आई और चहक के मालती से पूछा,

“दादी, किस आम की बात कर रही?”

मालती ने उसको वह आम दिखाया. वो उसे लेकर उछलने लगी,

“दिल वाला आम, दिल वाला आम”

और अन्दर भागी. उधर अपने कमरे में मालती की बेटी नव्या मुँह लटकाए बैठी थी. उसका उसके दोस्त रोनित से कुछ झगड़ा हो गया था. कारण इसबार भी वही. नव्या की बचपने वाली आदतें, जिद करना, तुनक उठाना. अबकी रोनित मानने के मूड में नहीं था. नव्या लगातार उसे चैट पर "सॉरी" सन्देश भेजती लेकिन कोई उत्तर नहीं आता.

उसी समय मिन्नी उसके पास आ गयी और बोली,

“बुआ देखो, दिल वाला आम...”

नव्या मुस्कुरा उठी. मिन्नी को गोद में बिठा के पूछा,

“कहाँ से लायी ये आम तू?”

“दादी ने दिया...” वह बोली.

नव्या को एक उपाय सूझा और उसके चेहरे पर चमक आ गयी. उसने झट से उस आम की फोटो खींच के रोनित को भेज दी. कैप्शन था,

“मेरा दिल”

तभी अचानक मिन्नी ने उसके हाथ से आम छीना और बाहर भाग गयी. वो दौड़ती हुई सीढ़ियों की ओर जाने लगी कि अपनी मम्मी शिल्पा के पास जाकर उसे भी वह आम दिखा सके तभी बाथरूम से मालती का छोटा बेटा श्रीकांत निकला. उसने मिन्नी को रोका,

“कहाँ भागी जा रही मिन्नी बाबू हमारी?”

मिन्नी उसके पास आई और आम दिखा के अपनी बड़ी-बड़ी आँखें मटकाती कहने लगी,

“चाचा, ये देखो कैसा आम मिला दादी को...”

“अरे वाह” श्रीकांत ने आम अपने हाथ में लिया ही था कि उसकी बीवी सारिका ने आवाज दी,

“कितनी देर लगा रहे बाथरूम में? जल्दी आइये न!”

श्रीकांत उसके साथ मोबाइल पर लूडो खेलते के बीच से चला आया था. उसने मिन्नी के सिर पर हाथ फेरा और सारिका के पास जाकर बोला,

“तुमने पुकारा और हम चले आये, दिल हथेली पर ले आये रे...”

सारिका ने देखा तो श्रीकांत अपने हाथ में वही आम लिए खड़ा था! उसको भी हँसी आ गयी. वह थोड़े नखरे के ढंग से बोली,

“जाओ, पहले कितना सुन्दर गुब्बारों से बना दिल देते थे, अब ये आम का दे रहे”

श्रीकांत ने किसी विचारक की तरह जवाब दिया,

“पहले हमारा प्यार नया था सो सांसारिक चमक-दमक से भरा था, अब हमारा प्यार परिपक्व हो गया अतः प्रकृति के निकट जा रहा...”

आँय” सारिका आश्चर्य से उसको देखने लगी. श्रीकांत हमेशा नटखट सी बातें करता था. आज उसके मुँह से मजाक में ही सही लेकिन एक गंभीर बात सुनकर सारिका को एक अलग ही अनुभूति हुई थी. उसने झट से उसके हाथ से वह आम लेकर चूम लिया और पास लेटी अपनी नवजात बेटी के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली,

“पापा बनने के साथ ही अक्ल भी आने लगी है आप में...”

श्रीकांत को हँसी आ गयी. उसी समय मिन्नी आ गई,

“चाचा, मेरा आम कहाँ है?”

“हाँ ले बेटा अपना आम”

कह के श्रीकांत ने आम सारिका से लेकर मिन्नी को वापस कर दिया. उधर बरामदे में पड़ोसी मधुसूदन बाबू आये हुए थे. रक्तचाप और तनाव के पुराने रोगी. श्याम ही उनको अक्सर चिकित्सीय परामर्श निःशुल्क देते रहते थे. उन्होंने आज फिर अपनी बात दुहरायी,

“मधुसूदन बाबू, दवा ही सबकुछ नहीं है, आप खुलकर हँसने की आदत डालिए”

“हँसी ही नहीं आती डॉक्टर साहब, क्या करें? कहाँ से खोज लायें हँसने के बहाने!”

मधुसूदन बाबू ने भी अपना रटा-रटाया उत्तर दुहराया. इतने में मिन्नी अपनी धुन में खोई वहाँ आई. श्याम ने उसके हाथ से वही दिल वाला आम लिया और मधुसूदन को दिखा के बोले,

“ये दिल खुशी से ही स्वस्थ रह सकता है भाई जी...”

वैसा अनोखा आम देख कर मधुसूदन बाबू को भी जोर की हँसी आ गयी. उन्होंने पूछा,
“ये कहाँ से मिला?”

“कहीं से भी मिला हो” श्याम बोले, “लेकिन आपको आज इतने दिनों बाद इसी के कारण हँसता हुआ देखा मैंने, ऐसे ही छोटी-छोटी बातों में इन्सान को खुशी खोजनी पड़ती है”

मधुसूदन बाबू ने भी सिर हिला के सहमति जताई. आज जाते-जाते कह गये,

“लाफ्टर क्लब जाना शुरू कर दूँगा कल से डॉक्टर साहब...”

तब तक दोपहर के खाने का समय हो चुका था. बड़ी बहू शिल्पा ने सीढ़ियों पर खड़े-खड़े ही नौकरानी माला से पूछा,

“माला, खाना बन गया क्या?”

मालती ने कुढ़ के उसकी ओर देखा। शिल्पा इधर सीधे नौकरानी से ही बात कर के अपना और अपने पति का खाना ऊपर कमरे में ले जाती थी। कोई घर का सदस्य सामने पड़ जाता तो ही बात करती। अपनी मम्मी को देख मिन्नी ने जल्दी से दादाजी के हाथ से आम लिया और भाग के उसके पास जाकर बोली,

“मम्मी देखो, दिल वाला आम...”

“हैं, ये कैसा आम?”

शिल्पा ने अचम्भे से आम हाथ में लेकर कहा. तभी नीचे से श्रीकांत ने चुटकी ले ली,

“भाभी, दिल ऐसे हाथ में लेकर मत रहिए, भैया नाराज हो जाएगा”

“ए, बदमाशी मत बतिया”

शिल्पा ने उसको मजाकिया भाव से आँखें दिखाते हुए कहा. उनकी बात सुन रही सारिका जल्दी से कमरे से बाहर आई और बोली,

“भाभी, दिल हाथ में लेकर देवर के पास क्या कर रहीं? हीहीही”

“तेरी तो...”

आम मिन्नी को थमाकर शिल्पा सारिका के पीछे भागी. सारिका कमरे में वापस भागते-भागते आखिर पकड़ी ही गयी और शिल्पा ने उसके गालों पर चिकोटी काटनी शुरू की.

“ई, बचाओ कोई भाभी से मुझे...”

सारिका हँसती हुई चिल्ला रही थी. पास से गुजरती मालती का मन तो खुशी से नाचने लगा था लेकिन ऊपर से वह खुद पर नियंत्रण रखे थी. अरे भई, आखिर आज कई दिनों के बाद घर में ऐसा हँसी-खुशी का वातावरण जो बना था! वर्ना कई दिनों से तो एक अजीब सी चुप-चुप छाई थी.

मालती ने कटे हुए आमों की थाली रसोई में रखी. मिन्नी वो दिल वाला आम उसे वापस कर के ऊपर अपने कमरे में चली गयी. उसी समय श्याम ने आवाज दी,

“अरे सुनना जरा यहाँ...”

मालती गयी. श्याम मोबाइल पर आँखें गड़ाए-गड़ाए उसके कान में धीरे से बोले,

“ए, जो दिल तुम्हारा मिला आज आम के ढेर से, उसपर मेरा तो नाम ही नहीं लिखा!...”
“अरे हटिये” मालती ने उनको धकेला और वापस रसोई की ओर चल दी, “मुझे लगा कोई जरूरी बात कहनी है, यहाँ तो बुढ़ौती में आज मजाक सूझ रहा!...”

वह मुस्कुराती भुनभुनाती जा रही थी और पीछे श्याम को हँसी आ रही थी. मालती को क्या पता था कि श्याम खुद घर में आई आज अपनेपन की बयार को भाँप पुलकित हो चुके थे.

इस पूरे माहौल में भी कोई शांत था तो वह नव्या. उसका मन रोनित के उत्तर की प्रतीक्षा में था. तभी रोनित का मैसेज आया,

“ये दिल तो कच्चा है अभी...सो खट्टा...”

नव्या ने तुरंत जवाब दिया,

“चिंता मत करो, बहुत जल्दी पक के मीठा हो जाएगा...”

रोनित को ये बात शायद पसंद आ गयी! उसने कुछ मजाकिया एमोजी भेजे और लिखा,

“शाम को मिलते हैं”

बस, फिर क्या था! मुँह लटका के बैठी ये आखिरी सदस्या भी मस्ती के मूड में आ गयी. उधर मालती रसोई में अचार की तैयारियों में आगे काम कर रही थी. नौकरानी ने पूछा,

“सारे आम काट लिए चाची जी?

“अरे नहीं रे” मालती बोली, “ये एक रह गया”
उसने वही दिल वाला आम उसे दिखाया. नौकरानी मुस्कुरा के अपने काम में लग गयी. तभी नव्या आई और बोली,

“अरे तो आखिर इस आम का होगा क्या मम्मी?”

“वही तो समझ नहीं आ रहा” मालती ने उलझन भरे स्वर में कहा, “इसपर छुरी चलाने में बुरा लग रहा”

घर के बाकी लोग भी वहाँ आ गये. शिल्पा ने सुझाव दिया,

“इसको फ्रीजर में रख देते हैं!”

“लेकिन कब तक रखेंगे वहाँ?” सारिका बोली. नौकरानी ने सीधे कह दिया,

“अरे दीदी, फोटो खींच के रख लीजिये और काट के डालिए अचार में...”

“ए” मालती ने आम सीने से लगा के कहा, “ऐसे मत बोल”

सारिका ने भी मालती की हाँ में हाँ मिलाई,

"और क्या, कितना सुंदर दिल वाला आम है ये"

नव्या ने टोका,

"भाभी, ये दिल वाला नहीं बल्कि दिलवाला आम है, सबका काम बनाने वाला"

उसका मन दरअसल अभी तक रोनित का गुस्सा खत्म हो जाने की खुशी में अटका था।

उसी समय श्रीकांत ने अपने चश्मे को ठीक किया और फिर से वही विचारकों की तरह चेहरा बना के बोला,

“मम्मी, कोई भी वस्तु यदि आत्मसात कर ली जाए तो वह अमर हो जाती है, हम इस आम को भी आत्मसात कर लेंगे, आप इसको साबुत ही मर्तबान में डाल दीजिये...हम सब इसे थोड़ा-थोड़ा बाँट के खा लेंगे

“सारिका का मुँह खुला का खुला ही रह गया. वो हैरत से बोली,

“ए मम्मी जी, इसमें कोई भूत-वूत घुस गया है क्या आज? तब से देख रही हूँ, समझदारी की बातें किये जा रहा...”

सब जोरों से हँसने लगे. मालती ने असमंजस का भाव लाते हुए जान-बूझकर असमर्थता जताई,

“अरे लेकिन पहले से ही इतने टुकड़े जमा हो चुके हैं, अब और आम डाल दिए तो उतना अचार खाएगा कौन?”

“ये भी कोई समस्या?” शिल्पा ने जल्दी से कहा, “हम सब इतने लोग हैं यहाँ! आराम से पूरे सीजन खाते रहेंगे...”

सब ने एक स्वर में उसकी बात का समर्थन किया. नये घरों में जाने की बात पुनः कुछ समय के लिए टल चुकी थी (समाप्त)


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