राजकीय पशु विद्यालय में मध्यांतर की घंटी बजी। सभी बच्चे
अपना-अपना टिफिन बॉक्स लेकर बैठ गये। पिक्कू बन्दर ने रोज की तरह आज फिर झिब्बू
हाथी को चिढ़ाना शुरू किया,
“ए झिब्बू, देख मेरी
रोटियाँ, घी लगी हैं...तेरी तो सूखी-सूखी”
झिब्बू की आँखें भी हमेशा
की तरह भर आयीं। उसके पिता की छोटी सी किराना दुकान थी और माँ गृहिणी। मुश्किल से
घर का खर्च चलाते हुए वे उसको पढ़ने भेजते थे जबकि पिक्कू बन्दर के पापा बैंक
मैनेजर थे और मम्मी प्रोफेसर। आराम से जिंदगी कट रही थी। इसी बात का पिक्कू को
बहुत घमंड था। वैसे तो वो सबको कुछ न कुछ टोकता फिरता था मगर झिब्बू से उसको विशेष
चिढ़ थी। कारण कि झिब्बू हमेशा क्लास में प्रथम आता और शिक्षक उसकी प्रशंसा सबके
सामने करते। वहीं पिक्कू किसी अन्य मेधावी छात्र को चॉकलेट, क्रीम का लालच देकर
उसकी नकल करता तब भी केवल पास भर हो पाता क्योंकि अपने आलसी स्वभाव के कारण वह कई
प्रश्नों के उत्तर लिखता ही नहीं था।
समय बीतता गया। पिक्कू और
झिब्बू दोनों स्कूल से बढ़कर कॉलेज में आ गये। संयोगवश इसबार भी उनका नामांकन एक ही
कॉलेज में हुआ था। उनकी जो कहानी स्कूल में थी, ठीक वही यहाँ भी शुरू हो गयी।
कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते-होते पिक्कू के मम्मी-पापा अपनी-अपनी नौकरियों से
सेवानिवृत हो गये। उनको एकमुश्त लाखों रुपये मिले। उसी साल महाराज धिबरू शेर ने वन
सेवा आयोग में नये प्रशासनिक अधिकारियों की वार्षिक नियुक्ति के लिए इच्छुक
छात्र-छात्राओं को आवेदन करने का आदेश जारी किया।
पिक्कू के माता-पिता ने
फट से पिक्कू को आवेदन कराया। पिक्कू परीक्षा में बैठना चाह तो नहीं रहा था लेकिन
मन मार के राजी हो गया। परीक्षा नजदीक आती गयी मगर पिक्कू अपने रवैये को नहीं बदल
सका। कुछ आवारा टाइप सियार, भेड़िये दोस्तों के साथ इधर से उधर घूमना, मस्ती करना
उसका मनपसंद काम था। वो वही करता रहा। पिक्कू के पापा सब देख रहे थे। उन्होंने
अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और लिखित परीक्षा में उसकी सीट के आसपास बैठने वाले
परीक्षार्थियों को अपनी ओर मिला लिया।
परीक्षा के दिन पिक्कू
आराम से परीक्षा केंद्र गया। उसके पिता ने उसे अपनी की गयी सेटिंग के बारे में बता
दिया था। उसकी सीट के आसपास बैठे परीक्षार्थी खुद लिखने की बजाय उसको लिखवाने में
ही लग गये। कोई एक विषय की चीट पुर्जी ले आया था कोई किसी अन्य विषय की। हाँ ये
जरूर समस्या आ रही थी कि इस तरह से सभी प्रश्नों के उत्तर दे पाना संभव नहीं हो
पाया क्योंकि किसी को ये पक्का पता तो था नहीं कि परीक्षा में प्रश्न किस अध्याय
से आएँगे! सो एकदम सटीक उत्तर वाली चीट पुर्जी कोई नहीं ला पाया था फिर भी पिक्कू
का काम बन गया। उसने लिखित परीक्षा पास कर ली।
अब बारी थी साक्षात्कार
यानि इंटरव्यू की। यहाँ भी किस्मत ने पिक्कू का साथ दिया। साक्षात्कार लेने वाले
पैनल के तीन लोगों में से एक उसकी माँ की सहेली चुमकी हिरणी थी। वो निश्चिन्त हो
गया कि अब तो मेरा प्रशासनिक अधिकारी बनना तय है। वह जो थोड़ी-बहुत तैयारी कर रहा
था, उसने वो भी छोड़ दी लेकिन जब साक्षात्कार देने पहुँचा तो पैनल में चुमकी को न
पाकर उसके होश उड़ गये पर अब क्या हो सकता था! बच्चू को अनजान लोगों के सामने बैठ
के ही साक्षात्कार देना पड़ा। बाहर निकलने पर पता चला कि अचानक चुमकी की तबियत ख़राब
होने के कारण वह आ नहीं पाई थी जिससे किसी और को बतौर पैनलिस्ट ले लिया गया।
परीक्षा का परिणाम आया और
वही हुआ जिसका पिक्कू और उसके मम्मी-पापा को डर था। पिक्कू साक्षात्कार में एक भी
नंबर नहीं ले सका और फेल हो गया। उसको निराशा तो हुई लेकिन उसके मम्मी-पापा के पास
पैसों की कोई कमी तो थी नहीं! उनलोगों ने उसे बीच बाजार में मोबाइल फोन एजेंसी
खुलवा दी। पिक्कू शान से वहाँ गद्दी पर बैठ गया।
कुछ दिनों तक सब ठीक चलता
रहा किन्तु धीरे-धीरे उसकी पुरानी आदत शुरू हो गयी। उसके निकम्मे दोस्त-यार वहाँ
भी अड्डेबाजी करने में लग गये। जो भी पैसा वो कमाता, होटलबाजी और मटरगश्ती में
खर्च हो जाता। इस आदत से दुकान घाटे में जाने लगी। उसके माँ-बाप के जमा पैसे भी
दुकान को सम्हालने में बर्बाद होते गये। अन्ततः उनका बैंक-बैलेंस खत्म हो गया। घर
में गरीबी आ गयी। पिक्कू निराशा में आकर और भी बुरे कामों की ओर चल पड़ा तथा दुर्भाग्य
से एक दिन अपने दोस्तों के साथ जुआ खेलता गिरफ्तार हो गया।
उसके माँ-बाप लाचार थे
क्योंकि उनके पास उसको छुड़ाने के लिए कोई वकील रखने के भी पैसे नहीं बचे थे। एक
शाम पिक्कू थाने में बंद रो रहा था। तभी सिपाही ने बुलाया,
“चलो, तुम्हारे वकील आये
हैं”
पिक्कू को हैरानी हुई कि
भला मेरा केस लड़ने कौन आया? पापा तो सुबह ही कह गये कि बेटा, तेरे लिए आज भी कोई
वकील नहीं कर सकूँगा मैं! फिर भी वह उठा। सिपाही उसे इंस्पेक्टर के पास ले आया।
वहाँ कोई हाथी काले कोट में सजा-धजा बैठा था।
“आपके मुवक्किल आ गये
वकील साहब” इंस्पेक्टर उस हाथी से बोला। हाथी जैसे ही पिक्कू की ओर पलटा, पिक्कू
की आँखें आश्चर्य के मारे फटी की फटी रह गयीं। वो वकील कोई और नहीं बल्कि उसके
बचपन का सहपाठी झिब्बू हाथी था। झिब्बू उसे देख के बोला,
“चिंता मत करो, मुझे अपने
किसी साथी से तुम्हारी खबर मिली तो भागा-भागा आया हूँ, मैं निःशुल्क तुम्हारा केस
लडूँगा, प्रयास करता हूँ कि कल ही तुम्हारी जमानत हो जाए”
“त...तुम वकील क...कैसे
बने?” अचम्भे से पिक्कू की आवाज हकलाने लगी थी। झिब्बू बोला,
“बस मेहनत करता रहा,
ट्यूशन पढ़ा के अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल लिया”
पिक्कू एक टक उसे निहारता
रहा। जाते-जाते झिब्बू ने उसे एक डिब्बा थमाया और मुस्कुरा के बोला,
“सुना यहाँ तुमको समय से
खाना नहीं मिल रहा सो तुम्हारे लिए खाना लाया हूँ, खा लेना, और हाँ, सभी रोटियाँ
घी लगी हुई हैं, तुम्हें पसंद आएँगी”
अपनी अब तक की गलतियों पर
बेहद शर्मिंदा पिक्कू भरी आँखों से झिब्बू को जाता देख रहा था (समाप्त) ।
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बहुत सुंदर कहानी । हार्दिक बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर
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