रविवार, 14 फ़रवरी 2021

बेरोजगारी (लघुकथा) | laghukatha in hindi | laghukatha

आज रोज की तरह मॉर्निंग वॉक के लिए मैं, मेरे मित्र सुजीत बाबू और दीपक जी साथ थे। रास्ते में सुनील मिला। औपचारिक अभिवादन के बाद मुझे उसके बेटे सनी का ध्यान आया जो दो दिनों पहले तनाव में होने की बात कह रहा था, कारण रोजगार नहीं मिल पाना!

 

मैंने सुनील से कहा,

 

"भाई, अपने बेटे को अपने मेंस पार्लर में क्यों नहीं बिठाते? काम न मिलने के कारण वह परेशान रहता है। तुमने एक बार बताया था कि तुम्हें उस मेंस पार्लर से पच्चीस से तीस हजार की कमाई होती है!"

 

"क्या बताऊं भैया?" सुनील निराश स्वर में बोला, "उसको मेंस पार्लर वाला काम पसंद नहीं, कहता है सरकारी नौकरी करूंगा"

 

कह कर वो बढ़ गया। दीपक जी मुझसे बोले,

 

"गुप्ता जी के बेटे की भी वही समस्या है। अच्छी भली चलने वाली अपनी किराने की दुकान पर नहीं बैठना चाहता"

 

"माता-पिता का भी दोष होता है इसमें भाई" अब तक सब चुपचाप सुन रहे सुजीत बाबू बोल उठे, " सिन्हा साहब के बेटे ने एमसीए किया हुआ है और अपनी कोचिंग क्लासेज शुरू करना चाहता है लेकिन सिन्हा साहब जबरन उसे गवर्नमेंट जॉब की तैयारी में उलझाए हुए हैं"

 

बातों का क्रम जारी रहा लेकिन मेरी आंखें सरकारी नौकरी के मोह में बंदी मानसिकता को बेरोजगारी का विशाल दलदल बनाते देख रही थी और कान उसमें डूबते भविष्य की चीखें सुन रहे थे। (समाप्त)

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